मुझे उस चिड़िया की आंख दिख रही है, गुरुदेव”

 जब अश्वत्थामा ने अपने पिता द्रोणाचार्य से कहा की आप  मुझसे  से ज्यादा अर्जुन को क्यों सर्वश्रेठ धनुहार समजते है। 

द्रोणाचार्य ने अश्वत्थामा से कहा।  पुत्र यहाँ मेरे घर का अगन नही है यहाँ गुरुकुल है यहाँ जो सबसे अच्छा करेगा वो ही  प्रिय होगा यहाँ बात सुनते ही अश्वत्थामा ने गुरु द्रोणाचार्य से कहा की आप बिना परीक्षा लिए यहाँ कैसे कहा सकते है की अर्जुंन  हमसबसे  सर्वश्रेठ है।  तब गुरु द्रोण  ने कहा ठीक है पुत्र तुम्हारे मन की शांति  के लिया ये भी कर लेते है।  
गुरु द्रोण ने सभी राज कुमारो को एक पेड़ के नीचे ले गए।  और कहा राजकुमारों इस पेड़ पर  एक पक्षी रूपी यन्त्र है जिसपे आप सबको निशाना साधना है।  
गुरु द्रोणाचार्य ने सबसे पहले युद्धिष्ठिर को आगे बुलाया और तीर कमान उसके हाथों में थमाते हुए उससे पूछा, “वत्स, तुम्हें इस समय क्या-क्या दिख रहा है?” इस पर युद्धिष्ठिर ने जवाब दिया, “गुरुदेव, आप, मेरे भाई, यह जंगल, पेड़, पेड़ पर बैठी चिड़िया व पत्ते आदि सब कुछ दिख रहा है।फिर इसके बाद, उन्होंने भीम को आगे बुलाया और उसके हाथों में तीर-कमान थमा दिया। फिर उन्होंने भीम से पूछा कि उसे क्या-क्या दिख रहा है। इस पर भीम ने जवाब दिया कि उसे भी गुरु द्रोणाचार्य, उसके भाई, पेड़, चिड़िया, धरती व आसमान सब कुछ दिख रहा है। गुरु द्रोणाचार्य ने उसके हाथों से भी धनुष-बाण वापस ले लिया और उसे अपने स्थान पर जा कर खड़े रहने को कह दिया।

इस प्रकार गुरुदेव ने एक-एक करके नकुल, सहदेव और सभी कौरव पुत्रों को बुलाया और उनके हाथों में धनुष-बाण थमाते हुए, उनसे भी यही सवाल पूछा। उन सभी का जवाब भी कुछ इस प्रकार ही आया कि उन्हें गुरुदेव, भाई, जंगल, उसके आसपास की चीजें व पेड़ आदि दिख रहे हैं। इन जवाबों के बाद उन्होंने सभी को अपने-अपने स्थान पर वापस भेज दिया।

 अब गुरु अपने पुत्र  अश्वत्थामा को बुलाते है और कहते है आप आप निशाना साधो  अश्वत्थामा।  अश्वत्थामा निशाना सधता है गुरु  अश्वत्थामा  से भी वही सवाल पूछते है की तुम्हे  क्या दिखाई दे रहा है।   अश्वत्थामा कहता है गुरुवार मुझे आप के चरण और पेड़ पे लटकी एक चिड़िया दिखाए दे रही है गुरु देव।  यहाँ सुन द्रोण ने  अश्वत्थामा को कहा आप भी अपने जगा पर चले जाओ 
आखिरी में अर्जुन की बारी आई। गुरुदेव ने उसे आगे बुलाया और धनुष-बाण उसके हाथों में दे दिया। फिर उन्होंने अर्जुन से पूछा, “वत्स बताओ कि तुम्हें क्या दिख रहा है?” अर्जुन ने कहा, “मुझे उस चिड़िया की आंख दिख रही है, गुरुदेव”। गुरुदेव ने पूछा, “और क्या दिख रहा है तुम्हें, अर्जुन?” “मुझे उस चिड़िया की आंख के अलावा कुछ नहीं दिख रहा, गुरुवर,” अर्जुन ने कहा। यह सुनकर कि अर्जुन चिड़िया की आंख के अलावा कुछ नहीं देख रहा, गुरु द्रोणाचार्य मुस्कुराए और कहा, “तुम इस परीक्षा के लिए तैयार हो। निशाना लगाओ, वत्स।” गुरु का आदेश मिलते ही अर्जुन ने चिड़िया की आंख पर तीर मारा और तीर सीधे उसके लक्ष्य पर जाकर लगा।


अश्वत्थामा ने तुरंत अपने पिता  गुरु द्रोण से  माफ़ी मागि।  तब द्रोण ने कहा तुम तो मेरा जीवन प्रकाश हो वंस लेकिन जीवन में अब कभी किसी से ईर्षा मत करना पुत्र।  

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