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क्या आप को पता है माँ ( गंगा ) की शादी किसे हुई थी।

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 क्या आप को पता है माँ ( गंगा  ) की शादी  किसे हुई था। एक समय की बात है।  एक दिन हस्तिनापुर के राजा महाराज सांतनु गंगा किनारे शिकार पर निकले थे।  ौस समय गंगा किनारे माता गंगा से  मुलाकात हो जाती है।  ौंसे पूछती है हे युवक आप कोण है और यहाँ क्या कर रहे है। महाराज सांतनु अपना परिचय देते है।  में हस्तिना पुर का राजा महाराज सांतनु हु और इस समय शिकार पर निकला हु। आगे रहा गंगा से पूछ ते है की हे देवी आप कोण है। गंगा ने कहा माँ गंगा हु। गंगा जी ने कहा कि आप शिकार करने निकले हैं तो शिकार करिए महाराज।  शांतनु कहते हैं कि मैं मेरा तो खुद ही शिकार हो गया है माता गंगा ने पूछा कि आप का शिकार किसने कर लिया है महाराज शांतनु कहते हैं आपने माता गंगा कहती है कि यह तो बहुत ही बुरा हुआ हस्तिनापुर नरेश को सावधान रहना चाहिए क्योंकि राजा बिना तो हस्तिनापुर ऐसा लगेगा जैसे धनुष बिना धनुर्धारी का कंधा अब हस्तिनापुर का क्या होगा महाराज। यह तो अब तुम्हारे हाथ में है देवी।   गंगा जी ने पूछा कि मेरे हाथ में कैसे। महाराज शांतनु कहते हैं कि अगर आप हस्तिनापुर की पटरानी बन जाओ तो हस्तिनापुर भी बच जाएगा और महाराज शांतन

जानिए कोण थे राजा भरत और क्यों उनहोने अपने पुत्र को राजा नही बनाया

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जानिए कोण थे राजा भरत और क्यों उनहोने अपने पुत्र को राजा नही बनाया    महाभारत  की कहानी तब नही सुरु हुई थी जब द्रोपदी ने धुर्योधन को अँधा कहा था।  यहाँ कहानी  इन घटना से बहुत पहला दूसयंत और सकुंतला के पुत्र चक्रवर्ती महाराज भारत की विजय यात्रा से लौटने पर हस्तिनापुर से सुरु होती है।  अब बरी अति है की राजा भारत किसे को राज का युवराज बना दे।  राजा भारत ने कहा महामंत्री युवराज की घोसना चन्द्रवंशियो की पूर्णिमा समारोह में की जाये  गई।  अब राजा एक ऋषि की पास जाते है और ौंसे पूछ ते है की हे ऋषि में तो नौ  पुत्रो का पिता हु परन्तु युवराज किसे बनाओ ऋषिवर। ये सुनते ही ऋषि कहते है  मतलब ये है की पूरी दुनिया जितने वाला अपने आप पर हे विजय नही प् सका है।  और आगे ऋषि कहते है की अगर आप अपने आप पर विजय नही प् सकते तो न्याय नही कर पाऊ गए। इस लिए जाऊ और स्वयं पर विजय पाउ।        हस्तिना पुर चन्द्रवंशियो प्रभाव से जगमगा रहा है. और आज राजभवन में इतिहास स्वयं सांस रूके खड़ा है और इस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा है जब आज हस्तिनापुर उसका युवराज देने वाला है यह है महाभारत की अमर कथा का ुनलिखा  पहला अध्याय।     अब

जानिए किस श्राप के कारण गंगा ने अपने पुत्रो की हत्या कर दी।

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Mahabharat story      जानिए किस श्राप के कारण गंगा ने अपने पुत्रो की हत्या कर दी।    प्राचीन समय में राजा मैं मेभिः  थे उन्होंने बड़े-बड़े यज्ञ करके स्वर्ग लोक प्राप्त किया था।1 दिन बहुत सारे देवता और महावीर जिसमें मेभिः भी थे वहां सब ब्रह्मा जी की सेवा में आए थे जिसमें माता गंगा भी थी तभी हवा के वेग से गंगा जी के वस्त्र शरीर से खिसक गए वहां उपस्थित सभी लोगों ने अपनी आंखें नीची कर ली मगर राजा मेभिः गंगा को देखते रहे जब ब्रह्मा जी ने यह देखा तो राजा मेभिः को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया ब्रह्मा जी के श्राप के कारण राजा महावीर ने पृथ्वी लोक पर प्रतीक के पुत्र शांतनु के नाम से जन्म लिया एक बार महाराज शांतनु शिकार खेलते खेलते हैं गंगा के किनारे आए एक बार महाराज शांतनु शिकार खेलते खेलते हैं गंगा के किनारे आए यहां उन्हें एक परम सुंदरी एक स्त्री को देखा वह स्त्री गंगा ही थी उसे देखते ही राजा शांतनु उस पर मोहित हो गए शांतनु ने उन्हें महारानी बनने का निवेदन किया गंगा जी ने उसे स्वीकार किया और उनसे एक वचन लिया कि मैं तब तक ही आप की रानी बनी रहूंगी जब तक आप मुझसे कोई सवाल नहीं पूछेंगे

कुंती ने भगवान श्री कृष्ण से वरदान में हमेसा दुख में राहु ऐसा वरदान क्यों मांगा था

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कुंती ने भगवान श्री कृष्ण से वरदान में हमेसा दुख में राहु ऐसा वरदान क्यों मांगा था                 भगवान श्री कृष्ण रथा पर विराजमान होकर द्वारिका की और जा रहे थे।  तभी पांडवो ने प्रणाम किया भगवान ने कहा पांडवो को की भैया अब हम जा ही रहे है तो  हमारा मन है की हम  कुछ दे के जय तो मांगना है तो अभी।  पहली बरी महाजर युधिस्ठीर।  बोलिया महाराज क्या चाहिए।  महाराज ने मांगा की प्रभु मेरी धर्म में रूचि बानी रहे कभी मेरा धयान धर्म से न हटे बस ऐसी कृपा करो प्रभु बस।  भगवन ने कहा तथा अस्तु। उत्तरा ने भी मदत मागि ौंकि भी रक्षा की।  द्रोपती ने दसया भाव मांगा ौंपे कृपा की।  अर्जुन ने सक्या भक्ति मागि ौंकि कृपा की।  भीम दादा ने भजन मांगा ौंकि भी मनो कामना पूरी की।   अब भरी आए पीछे कड़ी ौंकि बुवा कुंती की।  भगवान ने कहा अरे बुवा आप कहा पीछे कड़ी हो। आप भी कुछ मांग लो। अब बुवा कुंती आगे आए।  कृष्ण जा रहे बुवा को छोड़ के इसलिए कुंती की आखो से आसु रुकने का नाम नही ले रहे है।  कृष्ण ने कहा बुवा तू क्यों रो रही है बस दवारिका हे तो जा रहा हु तू जब बुलाये गई तब आजाऊ गा।  बुवा कुंती ने कहा की हे कृष्ण आज मे  तुजे 

मुझे उस चिड़िया की आंख दिख रही है, गुरुदेव”

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 जब अश्वत्थामा ने अपने पिता द्रोणाचार्य से कहा की आप  मुझसे  से ज्यादा अर्जुन को क्यों सर्वश्रेठ धनुहार समजते है।  द्रोणाचार्य ने  अश्वत्थामा से कहा।  पुत्र यहाँ मेरे घर का अगन नही है यहाँ गुरुकुल है यहाँ जो सबसे अच्छा करेगा वो ही  प्रिय होगा यहाँ बात सुनते ही  अश्वत्थामा ने गुरु द्रोणाचार्य से कहा की आप बिना परीक्षा लिए यहाँ कैसे कहा सकते है की अर्जुंन  हमसबसे    सर्वश्रेठ है।  तब गुरु द्रोण  ने कहा ठीक है पुत्र तुम्हारे मन की शांति  के लिया ये भी कर लेते है।   गुरु द्रोण ने सभी राज कुमारो को एक पेड़ के नीचे ले गए।  और कहा राजकुमारों इस पेड़ पर  एक पक्षी रूपी यन्त्र है जिसपे आप सबको निशाना साधना है।   गुरु द्रोणाचार्य ने सबसे पहले युद्धिष्ठिर को आगे बुलाया और तीर कमान उसके हाथों में थमाते हुए उससे पूछा, “वत्स, तुम्हें इस समय क्या-क्या दिख रहा है?” इस पर युद्धिष्ठिर ने जवाब दिया, “गुरुदेव, आप, मेरे भाई, यह जंगल, पेड़, पेड़ पर बैठी चिड़िया व पत्ते आदि सब कुछ दिख रहा है।फिर इसके बाद, उन्होंने भीम को आगे बुलाया और उसके हाथों में तीर-कमान थमा दिया। फिर उन्होंने भीम से पूछा कि उसे क्या-क्या दिख

Mahabharat-story in short

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 महाभारत की कहानी कहा से सुरु होती है जानने के लिया पूरा पड़े  कहानी हस्तिनापुर के राजा शांतनु के साथ शुरू होती है, जो गंगा नदी से शादी करते हैं।  महाभारत में प्रमुख पात्रों में से एक भीष्म, उनके पुत्र थे।  गंगा ने उन्हें अपने ईश्वरीय कर्तव्यों को पूरा करने के लिए छोड़ दिया, और शांतनु ने सत्यवती से शादी की और उनके साथ उनके दो बेटे थे।  पुत्रों में से एक, विचित्रवीर्य, ​​उसके बाद राजा बना।  उन्होंने तीन पुत्रों, धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर को जन्म दिया।  धृतराष्ट्र अंधे थे, पांडु भीष्म द्वारा समर्थित राजा बन गए। धृतराष्ट्र ने गांधारी से विवाह किया और उनके सौ पुत्र हुए, कौरव।  पांडु ने कुंती और माद्री से विवाह किया और विभिन्न देवताओं के आशीर्वाद से पांचों पांडवों का जन्म हुआ।  सभी के लिए अज्ञात, कुंती पहले से ही अपने सबसे पुराने बेटे, कर्ण के लिए एक अवांछित माँ थी।  अपने राज्य में समृद्धि लाने के बाद, पांडु ने धृतराष्ट्र की देखभाल के लिए राज्य को सौंपने का फैसला किया।  पांडु और माद्री की मृत्यु के बाद, कुंती पाँचों लड़कों के साथ हस्तिनापुर लौट आईं।  चचेरे भाई, कौरव, और पांडव कभी नहीं मिले।
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                   आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है . न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥            आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है। आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।    English transalation  The soul is never born, it never dies having come into being once, it never ceases to be. Unborn, eternal, abiding and primeval, it is not slain when the body is slain.