जानिए किस श्राप के कारण गंगा ने अपने पुत्रो की हत्या कर दी।

Mahabharat story

 

   जानिए किस श्राप के कारण गंगा ने अपने पुत्रो की हत्या कर दी। 

 

प्राचीन समय में राजा मैं मेभिः  थे उन्होंने बड़े-बड़े यज्ञ करके स्वर्ग लोक प्राप्त किया था।1 दिन बहुत सारे देवता और महावीर जिसमें मेभिः भी थे वहां सब ब्रह्मा जी की सेवा में आए थे जिसमें माता गंगा भी थी तभी हवा के वेग से गंगा जी के वस्त्र शरीर से खिसक गए
वहां उपस्थित सभी लोगों ने अपनी आंखें नीची कर ली
मगर राजा मेभिः गंगा को देखते रहे
जब ब्रह्मा जी ने यह देखा तो राजा मेभिः को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया
ब्रह्मा जी के श्राप के कारण राजा महावीर ने पृथ्वी लोक पर प्रतीक के पुत्र शांतनु के नाम से जन्म लिया
एक बार महाराज शांतनु शिकार खेलते खेलते हैं गंगा के किनारे आए

एक बार महाराज शांतनु शिकार खेलते खेलते हैं गंगा के किनारे आए
यहां उन्हें एक परम सुंदरी एक स्त्री को देखा वह स्त्री गंगा ही थी
उसे देखते ही राजा शांतनु उस पर मोहित हो गए
शांतनु ने उन्हें महारानी बनने का निवेदन किया गंगा जी ने उसे स्वीकार किया और उनसे एक वचन लिया कि मैं तब तक ही आप की रानी बनी रहूंगी जब तक आप मुझसे कोई सवाल नहीं पूछेंगे और ना ही मुझे किसी काम के लिए रुकेंगे
अगर आपने मुझसे कुछ प्रश्न किया तो मैं तुरंत आपको छोड़ कर चली जाऊंगी महाराज शांतनु ने गंगा को वचन दिया कि मैं कभी आपसे प्रश्न नहीं पूछ गा और ना ही कोई सवाल करूंगा
और राजा शांतनु और मां गंगा ने विवाह कर लिया समय बीतने के बाद शांतनु के घर सात पुत्रों का जन्म हुआ
लेकिन सभी पुत्रों को गंगा ने  नदी में डाल दिया
लेकिन शांतनु कुछ भी नहीं कर पाए क्योंकि उन्हें डर था कि यदि मैंने इससे प्रश्न किया तो यह मुझे छोड़ कर चली जाएगी
आठवां पुत्र होने पर जब गंगा नदी की ओर जाने लगी तब शांतनु से रहा नहीं गया और उन्होंने पूछा कि वह यह क्यों कर रही है


शांतनु के यह पूछते हैं माता गंगा ने उन्हें बताया कि उन्होंने जिन पुत्रों को नदी में बहाया है वह सब श्रापित है और मैं उन्हें मुक्त कर रही हूं
शांतनु ने गंगा से पूछा कैसा सराप  और कैसे मुक्ति के बात कर रही हो तुम तब गंगा जी ने बताया कि प्रभु आप भी एक श्राप ही जी रहे हैं
एक बार सभी वसु अपनी पत्नियों के साथ वीरू पर्वत पर गुम रहे थे वह
महा ऋषि वशिष्ठ का आश्रम भी था वहां नंदिनी नाम की एक गाय भी थी
दयू नामक वसु ने अपनी साथियो  के साथ मिलकर उस गाय का हरण कर लिया
जब ऋषि वशिष्ठ को पता चला तब उन्होंने क्रोधित होकर सभी वसुवो को पृथ्वी लोक पर जन्म लेने का श्राप दे दिया तब वसुवो द्वारा क्षमा मांगने पर ऋषि वशिष्ठ ने कहा तुम सभी वसु को तो पृथ्वी लोक से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन इस दयू नमक वसु को अपने कर्म फल भोगने पड़ेंगे और इसे पृथ्वी लोक पर बहुत लंबा समय रहना पड़ेगा
वसु अपना समस्या लेकर माता गंगा के पास आते हैं तब माता गंगा ने उन्हें कहा कि मैं अपने गर्भ में धारण करके तुम सब को मुक्ती प्रदान करूंगी

वह अपने आठ वे पुत्र देवव्रत को नदी में नहीं बहती  हैं वह उसे अपने साथ ले जाती है. शांतनु ने उन्हें वचन दिया था कि मैं तुम्हें कभी किसी काम के लिए नहीं रुकूंगा लेकिन शांतनु ने गंगा को रोक दिया था इस वजह से गंगा को उनका साथ छोड़कर जाना पड़ता है लेकिन गंगा जाते वक्त शांतनु से कहकर जाती हैं कि आप मैं आप के आठवें पुत्र को शिक्षित महावीर बनाकर आपके पास छोड़ जाऊंगी। 

गंगा जी की आठवीं पुत्र का नाम देवव्रत था और आगे चलकर वह भीष्म पितामह के नाम से जाने जाते थे

 

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